आसमान से गिरी कुछ बुंदे
जिन्हे अस्तित्व नाही था
पेडो के पन्नो से होकार जमीन पर गिरी
और फिर बहने लगी धारा बनकर
फिर पथ्थरो से निकल कर वो
सिर्फ आगे बढती रही
छोटे नाले से मिल गई
वह नाला वादियो से निकलकर
दूर गाँव मे नदी से मिल गया
फिर नदी गाव शहरो से निकल कर
टेढे मेढे रास्तो से होकार
बहोत दूर जाकर समुन्दर से मिल गई
आज पेडो के पन्नो से निकली बुंदे
फक्र से कहती है हम समुन्दर है
और हमने भी मान लिया के
हर बूंद मे समुन्दर होता है ........
-------- जतिन
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