हर शाम से कोई रिशता सा है
और एक अंजाना अपनापन भी
खुशी हो या उदासी हो
ओ सांसो के साथ
घुल मिल जाती है मुझमे
ना प्यार है ना टकराव है
अनगिनत सुकून है मन का
बस थोडी तनहाइ जरूरी है
फिर मै उससे ओ मुझसे
कुछ कहते रहते है
लेकीन आवाज सुनाइ नही देती
अच्छा लगता है ऊसकी दो बाते सुनकर
पर ये भी सच है
कुछ पता नही चलता क्या कह रही है
वह रोज आती है
मुझे मिलने के लीये
लेकीन कोई शिकवा नही रहता
उसके जाने का
हम एक दुसरे के लीये
अजीब और अंजान बने रहते है
और शायद ईसीलीये
ये शाम कुछ अजीब है .
.... जतिन
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